
News India Live, Digital Desk: Congress Raised its voice: भारत और पाकिस्तान के बीच ऐतिहासिक सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty – IWT) हमेशा से ही राजनीतिक बहसों के केंद्र में रहा है. हाल ही में, कांग्रेस पार्टी ने यह दावा करके एक बार फिर इस विवाद को हवा दे दी है कि 1960 में हुआ यह समझौता तत्कालीन संसद की मंजूरी के बिना ही हस्ताक्षरित कर दिया गया था. यह आरोप एक पुराने विवाद को पुनर्जीवित करता है, जहां पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई विपक्षी नेताओं ने पहले भी इस संधि पर सवाल उठाए थे और पंडित जवाहरलाल नेहरू पर देश के हितों को “बेच देने” का आरोप लगाया था.इस संवेदनशील जल-बंटवारे संधि को लेकर हमेशा से राजनीतिक गलियारों में गरमागरम बहस होती रही है. आलोचकों का तर्क रहा है कि भारत को अपने नदी जल पर उचित अधिकार नहीं मिल पाया, जबकि समर्थक इसे एक कूटनीतिक जीत और भविष्य के विवादों को टालने वाले एक महत्वपूर्ण समझौते के रूप में देखते हैं. कांग्रेस का ताजा बयान इस बात पर जोर देता है कि इतने महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समझौते पर संसद में उचित चर्चा और अनुमोदन क्यों नहीं हुआ. यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया और राष्ट्रीय संप्रभुता के मामलों पर गंभीर सवाल खड़े करता है.अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यकाल में भी सिंधु जल समझौते की आलोचना की थी और नेहरू सरकार के इस कदम को भारत के पक्ष में कमज़ोर बताया था. वर्तमान कांग्रेस के दावे उन्हीं ऐतिहासिक आलोचनाओं से मिलते-जुलते हैं, जो भारत की जल सुरक्षा और पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंधों के लिए इस संधि के दीर्घकालिक निहितार्थों को दर्शाते हैं. यह विशेष रिपोर्ट इस ऐतिहासिक विवाद के अनछुए पहलुओं को सामने लाती है, जो दर्शाता है कि कैसे देश के सबसे महत्वपूर्ण जल-साझेदारी समझौतों में से एक राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का विषय बना हुआ है.
